1.
वो जन्मा युगपुरुष बनकर फिर से एक विधाता
मर्यादा जिनकी लव थी, चरित्र उनकी ज्वाला ।
दीपावली में जलते हुए दीपोकी जगमगती ये माला
बहार ये उजाला लाये, पर अंदर सब काला ।
आज भी जलते दीपो में उनका ही फेला प्रकाश,
लेकिन समझ ना आया हमको जीवन की लव का इतिहास ।
2.
सब का विष पीने वाली की स्तुति कर्ता एक महा-असुर,
जिनके तांडव से बचाते हैं बांसुरी के सुर।
अब ना तून्निर में वाण हैं और ना त्रिशूल की धार,
लेकिन फिर भी आज अमर हैं विष से भरे विचार।
मार्ग मुक्ति का आज भी खोजे मन ये रोज़ कहि,
लेकिन ये भी करना पाये हर ग़लत को सही ।